वैदिक विषय पर 1 वर्षीय डिप्लोमा कोर्स

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About Course

पाठ्यक्रम का उद्देश्य:
1. वैदिक साहित्य और विचारधारा के महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तार से अध्ययन करना।
2. वैदिक संस्कृति, धर्म, और दार्शनिक परंपराओं के मौलिक तत्त्वों को समझना।
3. वेदों, उपनिषदों, पुराणों, और अन्य वैदिक ग्रंथों का अध्ययन करके वैदिक धार्मिकता की महत्वपूर्ण धाराओं को विश्लेषण करना।
4. वैदिक यज्ञ, पूजा, और आध्यात्मिक अभ्यासों के सिद्धांत को समझना और उन्हें अपने जीवन में अंतर्निहित करना।
5. वैदिक विचारधारा के माध्यम से आत्मविकास और समाज सेवा की भावना को प्रोत्साहित करना।

इस पाठ्यक्रम में, छात्रों को वैदिक संस्कृति और धर्म के मूलभूत सिद्धांतों को समझाने के लिए अवसर मिलेगा और उन्हें एक प्रशांत, संतुलित, और समृद्ध जीवन की ओर प्रेरित किया जाएगा।

रिग्वेदीयकल्प सूत्र:
रिग्वेदीयकल्प सूत्र ऋग्वेद के श्रावकों के लिए कल्पना और कार्यवाही का निर्देशन करते हैं। ये सूत्र संस्कृत काव्य, गायन, यज्ञ, और पूजा के विविध आयामों को समाहित करते हैं। ऋग्वेदीयकल्प सूत्र सामाजिक और धार्मिक आचरणों के नियमों का भी विवरण प्रदान करते हैं।

यजुर्वेदकल्प सूत्र:
यजुर्वेदकल्प सूत्र यजुर्वेद के रिचा और साम दोनों शाखाओं के श्रावकों के लिए आचरण और कार्यवाही की विधियों का वर्णन करते हैं। इन सूत्रों में विभिन्न यज्ञों और संस्कारों के निर्देश दिए गए हैं, जो धार्मिक अद्ययन और आचरण के लिए महत्वपूर्ण हैं।

शामवेदकल्प सूत्र:
शामवेदकल्प सूत्र शामवेद के चंदस शाखा के श्रावकों के लिए यज्ञ और पूजा के विधियों का निर्देशन करते हैं। इन सूत्रों में गायन और अन्य धार्मिक कार्यों की विविध विधियाँ सम्मिलित हैं जो उनके आचरण में महत्वपूर्ण हैं।

अथर्ववेदकल्प सूत्र:
अथर्ववेदकल्प सूत्र अथर्ववेद के श्रावकों के लिए आचरण, पूजा, और अन्य धार्मिक कार्यों की विधियों का वर्णन करते हैं। इन सूत्रों में रोगनिवारण, आर्थिक समृद्धि, और परिवारिक कल्याण के लिए उपायों का भी विवरण दिया गया है।

ये सूक्त ऋग्वेद के महत्वपूर्ण सूक्त हैं, जो विभिन्न देवताओं की महिमा और महत्व को स्तुति करते हैं।

अग्नि सूक्त:
अग्नि सूक्त में अग्नि की महिमा और महत्व को स्तुति की गई है। अग्नि को समर्पित यज्ञों का वर्णन भी इस सूक्त में किया गया है।

विष्णु सूक्त:
विष्णु सूक्त में भगवान विष्णु की महिमा, शक्ति, और विभिन्न स्वरूपों की प्रशंसा की गई है। इस सूक्त में विष्णु के उत्तमता और संरक्षण की महत्ता का वर्णन किया गया है।

इंद्र सूक्त:
इंद्र सूक्त में भगवान इंद्र की जय और महिमा का गान किया गया है। इंद्र को शक्ति, साहस, और सम्मान के प्रतीक के रूप में प्रशंसा किया गया है।

उषस सूक्त:
उषस सूक्त में उषस की स्तुति की गई है, जो सुबह की लौ के साथ सृष्टि को उजागर करती है। इस सूक्त में उषस की उत्कृष्टता और सौंदर्य की प्रशंसा की गई है।
अक्ष सूक्त:
अक्ष सूक्त में आत्मा की महिमा और प्रशंसा की गई है। इस सूक्त में आत्मा को अद्वितीय और अज्ञेय माना गया है, जो संसार में सम्पूर्णता और सत्य है।

पुरुष सूक्त:
पुरुष सूक्त में प्राकृतिक ब्रह्मांड के सृष्टिकर्ता के रूप में पुरुष की महिमा का वर्णन किया गया है। इस सूक्त में पुरुष की अद्वितीयता और संपूर्णता की महत्ता को प्रस्तुत किया गया है।

वाक सूक्त:
वाक सूक्त में वचन और भाषा की महिमा का गान किया गया है। भाषा को सर्वशक्तिमान और संपूर्णता का स्रोत माना गया है जो सृष्टि का आदि और अंत है।

भूमि सूक्त:
भूमि सूक्त में पृथ्वी की महिमा, उसकी संरक्षा, और उसके महत्व का वर्णन किया गया है। पृथ्वी को भगवान की स्वरूपता का एक रूप माना गया है और उसके सम्पूर्णता की प्रशंसा की गई है।

शिव संकल्प सूक्त:
शिव संकल्प सूक्त में भगवान शिव की महिमा और प्रशंसा की गई है। इस सूक्त में भगवान शिव को सर्वशक्तिमान, संहारक, और परमेश्वर के रूप में वर्णित किया गया है।

शांतिध्यान सूक्त:
शांतिध्यान सूक्त में शांति की प्रार्थना और प्रशंसा की गई है। इस सूक्त में शांति की आवश्यकता, उसके महत्व, और उसके प्राप्ति के लिए ध्यान का वर्णन किया गया है।

राष्ट्रभिवर्धन सूक्त:
राष्ट्रभिवर्धन सूक्त में राष्ट्र के विकास और समृद्धि की प्रार्थना की गई है। इस सूक्त में समाज के समृद्धि और समृद्धि के लिए आशीर्वाद और प्रार्थना किया गया है।

छांदोग्योपनिषद का परिचय:
छांदोग्योपनिषद एक महत्वपूर्ण उपनिषद है जो सम्पूर्ण वेदांत दर्शन के मूलभूत सिद्धांतों का विवरण प्रदान करती है। यह उपनिषद छांदोग्य शाखा के शिष्यों को रहस्यों और आध्यात्मिक सत्यों के बारे में शिक्षा देती है। छांदोग्योपनिषद में ब्रह्म और आत्मा के अद्वितीयता, संसार का स्वरूप, और मोक्ष के लक्षण का विस्तृत विवेचन किया गया है।
रिग्वेद के भाग:
रिग्वेद को चार भागों में विभाजित किया गया है, जिन्हें सम्हिता के रूप में जाना जाता है। ये भाग हैं:

ऋग्वेद का प्रथम भाग: यह ऋग्वेद का प्रथम अध्याय है, जिसमें प्रार्थनाएं, मंत्र, और स्तोत्र हैं जो विभिन्न देवताओं की प्रशंसा करते हैं।
ऋग्वेद का द्वितीय भाग: इसमें अधिकांश ऋग्वेदीय मंत्रों के विवरण हैं जो यज्ञों और धार्मिक अद्ययन के लिए उपयोगी हैं।
ऋग्वेद का तृतीय भाग: इस भाग में सामगान के गानों का संग्रह है जो यज्ञों के समय गाए जाते थे।
ऋग्वेद का चतुर्थ भाग: यह भाग अत्यंत लघु है और विभिन्न प्रकार के यज्ञों के लिए मंत्रों का संग्रह है।

बृहद्देवता प्रथम अध्याय और द्वितीय अध्याय:
बृहद्देवता प्रथम अध्याय : ऋग्वेद का ग्रंथ हैं जो विभिन्न देवताओं के संबंध में मंत्रों का विवरण प्रदान करते हैं। इनमें विभिन्न देवताओं की महिमा और प्रशंसा की गई है।
बृहद्देवता द्वितीय अध्याय ऋग्वेद का ग्रंथ हैं जो विभिन्न देवताओं के संबंध में मंत्रों का विवरण प्रदान करते हैं। इनमें विभिन्न देवताओं की महिमा और प्रशंसा की गई है।

तैत्तिरीय संहिता : ऋग्वेद की मुख्य संहिताओं में से हैं। ये संहिता मंत्रों, प्रार्थनाओं, और स्तोत्रों का संग्रह हैं जो यज्ञों और धार्मिक कार्यों के लिए प्रयोग में लाए जाते थे। इस संहित में भगवानों की प्रशंसा, मानवता के लिए आशीर्वाद, और यज्ञ की प्रशंसा की गई है।
वाजसनेयी संहिता: ऋग्वेद की मुख्य संहिताओं में से हैं। ये संहिता मंत्रों, प्रार्थनाओं, और स्तोत्रों का संग्रह हैं जो यज्ञों और धार्मिक कार्यों के लिए प्रयोग में लाए जाते थे। इस संहित में भगवानों की प्रशंसा, मानवता के लिए आशीर्वाद, और यज्ञ की प्रशंसा की गई है।
तैत्तिरीयोपनिषद (Taittiriya Upanishad):
तैत्तिरीयोपनिषद यजुर्वेद के तैत्तिरीय ब्राह्मण के आधार पर लिखी गई है। यह उपनिषद आध्यात्मिक ज्ञान और विवेक के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जिसमें मनुष्य के आत्मा के विचार किए जाते हैं।

केनोपनिषद (Kenopanishad):
केनोपनिषद सामवेद के तैत्तिरीय संहिता के एक अध्याय के रूप में है। इस उपनिषद में ब्रह्म के गुप्त रहस्यों और इसके साक्षात्कार के विषय में विचार किया गया है।

कठोपनिषद (Kathopanishad):
कठोपनिषद यजुर्वेद के तैत्तिरीय ब्राह्मण के अंतर्गत आत्मा के महत्व को समझाने और मनुष्य के जीवन की महत्वपूर्ण शिक्षाएं प्रदान करती है।

मुण्डकोपनिषद (Mundakopanishad):
मुण्डकोपनिषद यजुर्वेद के मन्त्र भाग के अंतर्गत आत्मज्ञान और वेदांतिक तत्त्वों के विकास के बारे में चर्चा करती है।

रिकप्रातिशाख्य (Rik Pratishakhya):
रिकप्रातिशाख्य ऋग्वेद के पाठ की शैली और व्याकरण के नियमों का वर्णन करता है। यह एक प्राचीन संग्रह है जो वेद के पठन और उच्चारण की महत्वपूर्ण विवरण प्रदान करता है।

शुक्लयजुप्रातिशाख्य (Shuklayajur Pratishakhya):
शुक्लयजुप्रातिशाख्य यजुर्वेद के शुक्लयजुसंहिता के पाठन के विवरण को संदर्भित करता है। इसमें वेद के व्याकरण और पाठन के सम्बंध में निर्देश दिया गया है।

अथर्वप्रातिशाख्य (Atharv Pratishakhya):
अथर्वप्रातिशाख्य अथर्ववेद के पाठन के नियमों को वर्णित करता है और इसमें वेद की पाठ शैली के विविध पहलुओं का अध्ययन किया गया है।

रिग्वेदीय संवाद सूक्त (Rigvediya Sanvad Sukt):
रिग्वेद में विभिन्न देवताओं के बीच संवाद का वर्णन किया गया है। इन सूक्तों में देवताओं के बीच उत्तर-प्रतिद्वंदी वार्ताओं को विवरण किया गया है।

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Course Content

प्रथम अध्याय
रिग्वेदीयकल्प सूत्र ऋग्वेद के श्रावकों के लिए कल्पना और कार्यवाही का निर्देशन करते हैं। ये सूत्र संस्कृत काव्य, गायन, यज्ञ, और पूजा के विविध आयामों को समाहित करते हैं। ऋग्वेदीयकल्प सूत्र सामाजिक और धार्मिक आचरणों के नियमों का भी विवरण प्रदान करते हैं।

  • रिग्वेदीयकल्प सूत्र:
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  • यजुर्वेदकल्प सूत्र:
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  • शामवेदकल्प सूत्र:
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  • अथर्ववेदकल्प सूत्र:
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  • अग्नि सूक्त:
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  • विष्णु सूक्त:
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  • इंद्र सूक्त:
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  • उषस सूक्त:
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द्वितीया अध्याय

तृतीय अध्याय

चतुर्थ अध्याय

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